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पुरातात्त्विक श्रेणी के कपमार्क अब खीरगंगा नदी से लगे हुए बडेत गांव में भी देखने को मिले

ललित बिष्ट / अल्मोड़ा

अल्मोड़ा जनपद पुरातत्व के लिहाज से अपना विशेष स्थान रखता है। जिसमें आदिमानवों द्वारा बनाए गए शैलचित्र, शैलाश्रय, गुफाएं, कंदराये देखने को मिलती है।

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साथ ही द्वाराहाट शहर कत्यूरी काल के मंदिरों और जलाशयों की वजह से पुरातत्व में दिलचस्पी रखने वालो को हमेशा आकर्षित करता आया है।

 

 

 

यहां पुरातात्विक अवशेष के रूप में इस शहर को चांचरीधार, चंद्रेश्वर और धरमगांव नाम से तीन भागों में विभाजित किया गया।द्वाराहाट की खीरगंगा नदी के पास ही पुरातात्विक अवशेषो में अब तक की सबसे बड़ी ओखली देखने को मिली है जिसका व्यास 51 सेंटीमीटर और व्यास 30 सेंटीमीटर है।साथ ही भीमसेन का तवा नामक चट्टान भी देखने को मिली है।जिसका जिक्र उत्तराखंड के मशहूर पुरातत्वविद पद्मश्री डॉ यशोधर मठपाल की पुस्तक रॉक आर्ट इन कुमाऊं हिमालया में भी किया गया है।

 

 

 

इसी तरह के कुछ पुरातात्त्विक श्रेणी के कपमार्क अब खीरगंगा नदी से लगे हुए बडेत गांव में भी देखने को मिले है।गांव के बुजुर्गों का कहना है की ये पुरातात्त्विक श्रेणी की ओखलिया उन्होंने से बचपन से ऐसी ही देखी है लेकिन किसी के पास भी इनके बारे में सही जानकारी उपलब्ध नहीं है।वही गांव की महिला प्रधान रेखा बिष्ट ने कहा है कि मनरेगा के काम के सिलसिले में इस जगह आना हुआ और इन ओखलीनुमा संरचना को देखकर काफी हैरानी हुई।

 

 

 

इन ओखलियो को कत्यूरी काल का बताया जा रहा है।क्योंकि गांव के प्राचीन इतिहास की शुरुआत भी इसी क्षेत्र से बताई जाती है।इसके बारे किसी ने जानने की कोशिश नही लेकिन अब इस क्षेत्र के इतिहास के बारे में जानकारी एकत्र की जाएगी।

 

 

 

 

साथ ही उन्होंने पुरातत्त्वविदों से भी यहां आकर इस पर शोध करके इसकी हकीकत से सबको रूबरू करने की गुजारिश की है। उन्होंने आशंका भी जतायिथाई की इस तरह के कई अन्य और अवशेष भी इस जगह पर मिल सकते है।जिससे क्षेत्र को भी विकसित किया जा सके।इससे पूर्व में भी जालली घाटी में मेगलिथिक कप-मार्क्स ओखलियों के अवशेष देखने को मिल चुके है।

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