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आखिर क्यों अधिकारी कर रहे हैं कार्रवाई के लिए ‘शुभ मुहूर्त’ का इंतजार?

सलीम अहमद साहिल

रामनगर के तराई पश्चिमी डिवीजन के प्रतिबंधित जंगलों में माफिया का दबदबा इस कदर बढ़ गया है कि वन विभाग की कलम उसके खिलाफ चलने से पहले थरथराने लगती है। आमपोखरा रेंज के जंगलों में गुर्जरों ने अवैध बस्तियां बसा ली हैं, और एक रसूखदार माफिया ने इन बस्तियों को अपना अड्डा बना लिया है। इन जंगलों में न केवल अवैध तरीके से कब्जे किए जा रहे हैं, बल्कि वहां माफिया ने बिना अनुमति सीसीटीवी कैमरे भी लगा दिए हैं। इन कैमरों से जंगल की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है, लेकिन वन विभाग के अधिकारी कैमरे हटाने और कार्रवाई करने के लिए किसी ‘शुभ मुहूर्त’ का इंतजार कर रहे हैं।

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सूत्रों के अनुसार, यह माफिया पहले से ही कई आपराधिक मामलों में लिप्त है। लेकिन रसूख इतना गहरा है कि वन विभाग के अधिकारी उसके खिलाफ कोई सख्त कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। कैमरे लगाने की यह हरकत न केवल अवैध है, बल्कि यह वन्यजीवों और पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा है।

 

 

 

इन प्रतिबंधित जंगलों में इंसानी गतिविधियां पहले से ही वन्यजीवों के लिए खतरा बनी हुई हैं। लेकिन अब यह माफिया जंगल को अपना निजी साम्राज्य समझकर वहां कानून का मजाक बना रहा है। बताया जा रहा है कि इन कैमरों का इस्तेमाल सिर्फ वन्यजीवों की निगरानी के लिए नहीं, बल्कि अवैध तस्करी और जंगल में अन्य गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है।

 

वन विभाग की निष्क्रियता ने इस माफिया के हौसले और बढ़ा दिए हैं। कुछ साल पहले इसी इलाके में हाथी के शिकार और दांतों की तस्करी का मामला सामने आया था। स्थानीय जानकारों का मानना है कि उस समय पकड़े गए तस्करों के तार इस माफिया से जुड़े हुए थे। अब ऐसी आशंका जताई जा रही है कि यह माफिया जंगल में अवैध खनन और लकड़ी तस्करी जैसी गतिविधियों को भी अंजाम दे सकता है।

 

स्थानीय लोग भी इस माफिया से परेशान हैं, लेकिन उसके रसूख के चलते कोई भी खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं करता। वन विभाग की चुप्पी से साफ है कि या तो अधिकारी माफिया के दबाव में हैं या फिर उन्हें कार्रवाई से बचने का बहाना चाहिए।

 

वन विभाग के अधिकारियों की कलम आखिर इस माफिया के खिलाफ चलने से क्यों कांप रही है? क्या यह राजनीतिक दबाव का नतीजा है या फिर माफिया के आर्थिक प्रभाव का असर? यह सवाल अब जनता और पर्यावरण प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बन चुका है। जंगल में कानून का राज कब लौटेगा और माफिया का यह खेल कब खत्म होगा, यह देखना अभी बाकी है।

 

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